कौन चुपके से तुम्हारा , दुध से मुंह धो गया । ।
गंध किसलय पी समीरण
फिर रहा है तन उघारे
छू रहे तुमको सहम कर
सांस झोंके ये बेचारे
मेरे हाथों हाथ तेरा ,शशक - शावक हो गया ।
कौन चुपके से तुम्हरा , दूध से मुंह धो गया । ।
आबनूसी केश बांधो
अब हया की रेख लान्घो
मत होंठ चाबो कुनमुना कर
आज का आकाश बांधो
उर्मियों मैं झील की ,को संगमरमर धो गया ।
कौन चुपके से तुम्हारा , दूध से मुंह धो गया । ।
1 comment:
कविता का अंदाज़ बहुत सुन्दर है!
---मेरा पृष्ठ
तख़लीक़-ए-नज़र
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